Tuesday, July 27, 2010

बिहार में तालिबान !



असली तालिबान

बिहार में तालिबान
ये दो अलग-अलग तस्वीरें हैं.. और दोनों तस्वीरें जहां कि है वो एक-दूसरे से हजारो किलोमीटर की दूरी पर है.. लेकिन दोनों का व्यवहार एक समान है.. एक अफगानिस्तान की है जहां धर्म के नाम शासन करने वाला तालिबानी गुनाहों की सजा दे रहा है.. वहीं दूसरी तस्वीर भारत के बिहार के वैशाली की है.. जहां से पहली बार दुनिया में शांति का संदेश दिया गया था.. जी हां, वही वैशाली जिसे गणतंत्र की उदय के लिए जाना जाता है... वही वैशाली जिसे महावीर, बुद्ध,अशोक के लिए जाना जाता है... इसी वैशाली की गौरव गाथा को ध्यान में रखते हुए आजाद भारत ने अपना राष्ट्रीय चिन्ह अशोक चक्र भी वैशाली से लिया था... अगर वैशाली की पृष्ठभूमि के बारे में लिखा जाय तो शायद कई बर्षों और कई पन्नों में भी उसकी गौरव गाथा को समेटा नहीं जा सकता है.. लेकिन पिछले कुछ समय से एक बार फिर वैशाली चर्चा में है.. लेकिन इस बार कोई गौरव गाथा नहीं, बल्कि चर्चा में है मानवता औऱ इंसानियत को शर्मसार करने के कारण.. कुछ दिन पहले यानी आज से कुछ तीन साल पहले 2007 की घटना है जब वैशाली के राजापाकड़ में ग्रामीणों ने चोरी के आरोप में पीट-पीट कर 11 लोगों की हत्या कर दी थी.. आज तीन साल बाद वैशाली में हैवानियत की हद पार करने वाली एक घटना सामने आई.. हरकत ऐसी कि तालिबान भी शर्मा जाए … वो तालिबान जिसके कारनामे से शैतान भी थर्राता है.. वैशाली के चेहराकलां प्रखंड के मंसूरपुर हलैया गांव के रहने वाले 15 साल के राजेश को छेड़खानी के आरोप में जेडीयू नेता और मुखिया संगीता देवी के पति ने जबरन घर से खींचकर गांव के बीचोबीच लाया। ग्रामीणों के बीच उसे नंगा कर दिया। दोनों पैर बांधकर उल्टा टांग दिया, फिर लाठी की बौछार करने लगा। मुखिया पति शंभू शरण राय ने दोनों हाथों से एक के बाद एक कई लाठियां बरसाई.. और राजेश कराहता रहा.. इतना ही नहीं जब उसका मन इससे भी नहीं भरा तो वो बीच बीच में राजेश से जमीन पर थूक भी चटवाता था.. और सैंकड़ों की जमात में बैठे ग्रामीण तमाशबीन बनकर देखते रहे.. किसी ने भी इस क्रुरता का विरोध करने की जहमत नहीं उठायी.. इतनी बड़ी घटना के बारे में पुलिस प्रशासन को भी कोई खबर नहीं मिली.. लेकिन जब एक साथ सभी न्यूज़ चैनलों पर बिहार में तालिबान के नाम से इस वीडियो को दिखाया जाने लगा .. तब जाकर प्रशासन की नींद खुली औऱ अधमरे राजेश को अस्पताल पहुंचाया गया.. संयोगवश इस वीडियो को बिहार के हुक्मरान भी देखे .. चुनावी साल है और विपक्ष इसका फायदा नहीं उठा सके.. क्योंकि तालिबानी फरमान सुनाने वाला भी उन्हीं के पार्टी का नेता है.. इसलिए सबसे पहले उसे पार्टी से निकाला गया औऱ बाद में सूबे के डीजीपी को निर्देश दिया गया.. लेकिन सवाल ये उठता है कि अगर ऐसी खबर मीडिया के सामने नहीं आती.. तो क्या प्रशासन को इसकी खबर लगती.. राजेश को न्याय मिल पाता.. इन सबों के बीच एक बड़ा सवाल ये है कि क्या तालिबान हमसब के बीच में है.. नहीं तो हजारों किलोमीटर दूर घटने वाली घटना भी हमारे यहां कैसे घटता है.. इस घटना से तो कहा जा सकता है कि तालिबान कोई संगठन नहीं बल्कि मानसिकता है.. और इस मानसिकता को जड़ से खत्म करने के लिए आमलोग,मीडिया और सरकार सामने आना पड़ेगा.. नहीं तो हम फिर से इतिहास के उस अंधयुग में चले जाएंगे.. जहां कानून का शासन नहीं बल्कि हम्बूराबी संहिता से शासन चलती है

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